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आज कल हर कोई एक ही बात कर रहा है और वह है मध्य प्रदेश में किया गया एनकाउंटर. कुछ लोग इसे सही बता रहे है और बहुत से लोग इसके सही होने के सबूत मांग रहे है. कौन कितना सही है यह तो भगवान ही जाने.हर किसी का सोचने का अपना नजरिया है.ऐसा ही मेरा भी नजरिया है की क्यों आज हम सरकार के हर कदम को तौलने में लग गए है की उन्होंने जो भी किया वह गलत ही होगा. मुझे याद नहीं आता कांग्रेस की १० साल की सरकार के किसी कदम को इतने सवालों से गुजरना पड़ा हो. खैर उनके लिए तो यह भी कहा जा सकता है की उन्होंने कुछ किया ही नहीं तो पूछते ही क्या.पर उनसे तो कभी यह भी नहीं कहा गया की वह कुछ करते क्यों नहीं.
एक पल के लिए हम इन भागे हुए कैदियों को आतंकवादी न भी माने या फिर कहे की मुकदमा चल तो रहा था उन पर हमें इंतजार करना चाहिए था फैसला आने तक, तो मैं उन भाई-बहनो से बात पूछना चाहुगी की इतने सालों से जो जेल में थे वह लोग तो अवश्य ही अपराधी ही होंगे कोई अच्छे इन्सान तो होंगे नहीं, अगर उन्हें मार भी दिया गया तो क्राइम रेट कुछ कम ही हुआ होगा बढ़ा तो नहीं होगा. वैसे भी सुना जा रहा था की वह लोग मेडिकल ग्राउंड पर बाहर आने के लिए कोशिश कर रहे थे जो न तो जनता के लिए अच्छा था और न ही देश के लिए.
हम लोगो की आदत है सही लोगो के साथ कोई खड़ा नहीं होना चाहता पर गलत को बहुत जल्दी साथ मिल जाता है. हो सकता है हर इंसान की सही और गलत की परिभाषा अलग अलग हो पर जो लोग इतने सालों से जेल में है वह सही तो नहीं होंगे इतना तो अवश्य
है. क्राइम रेट बढ़ने पर मैंने कई बार लोगो को कहते सुना है की ऐसे लोगो को जेल नहीं होनी चाहिए सीधा गोली मर देनी चाहिए पर अगर सरकार ऐसा कुछ कर रही है तो इतना बवाल क्यों और किस आधार पर. हो सकता है वह जेल से छूटने के बाद फिर कोई ब्लास्ट करते फिर कितने घर उजड़ते, फिर हमारे सैनिक उन्हें अपनी जान में खेल कर पकड़ते और फिर वही हमारे देश के कमजोर कानून से वह बच निकलते.क्या जो लोग इस एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे है अगर किसी ब्लेस्ट में उनकी परिवार का कोई सदस्य मारा गया होता तो क्या तब भी यह लोग ऐसे ही सड़को पर होते. इस तरह की घटना में मरे हुए परिवार के पास जाकर कोई दुःख नहीं जतायेगा पर अगर गलत लोगो को सही या गलत तरीके से मार दिया जाये तो कितने लोग खड़े हो जाते है उनके साथ. अगर यह गन्दी पोलोटिक्स भी है तो क्या आम जनता यह देखती है एक बार भी की क्या इन लोगो ने किसी शहीद पर दुःख जताया है या नहीं या उनकी मदद को कोई आया है या नहीं. कसाब के टाइम पर भी यही देखने को मिला, बुरहान बानी पर भी, और अब सिमी के सदस्यों के मरे जाने पर भी.
हम कब तक लोकतंत्र के नाम पर गलत लोगो के हाथों का खिलौना बने रहेगे, अगर आज खुल कर जीना है,एक अच्छे समाज को देखना है तो हमें ज्यादा मेहनत करनी होगी अपनी सही और गलत की परिभाषा पर. उन लोगो को समझने पर की कौन सिर्फ अपनी रोटी सेकना चाहता है और कौन दूसरे के दर्द को समझ रहा है.
इस बात को समझना भी जरुरी है कि हमारी पुलिस और आर्मी सिर्फ मरने के लिए नहीं है,वह अपराधियों को इसलिए नहीं पकड़ती की वह एक दिन छूट जाये और फिर से अपराध करें बल्कि उनकी मेहनत तब सफल होती है जब अपराधी को सजा मिले और देश सुरक्छित
महसूस करें.
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