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ज़िन्दगी की उलझने खुद को खुद से ही अजनबी बना देतीं है. पता नहीं क्यूँ आज मेरा मन मेरा नहीं लगता. उसकी सोच, उसकी उड़ान जैसे कही खो गयी है. उसकी चंचलता, उसकी मासूमियत कही गुम हो गयी हैं . कहते है भगवान ने सभी के लिए साथी बनाया है. हर किसी के लिए कोई न कोई है पर कहाँ ? पता नहीं……..
दिल आज ज़िन्दगी की एक कहानी आपके साथ बाँटना चाहता है. अपनी ज़िन्दगी का खूबसूरत पल, एक प्यारा सा लम्हा, मेरी ज़िन्दगी की कहानी का एक खूबसूरत सा टुकड़ा…
मै मेघा देहरादून की रहने वाली एक साधारण लड़की जिसे प्रकृति से बहुत प्यार है, जिसे प्रकृति के साथ रहना बहुत पसंद है. मसूरी, एक हिल स्टेशन जो देहरादून से २०-२५ किलोमीटर की दूरी पर है, अपने ऑफिस से छुट्टियां ले कर घूमने आयी थी. दिसम्बर का महीना था और रात को ही बर्फ़बारी हुई थी. सुबह जब होटल से बाहर निकली, बाहर का नजारा बहुत खूबसूरत था बर्फ की चादर से ढके घर, पेड़ और सड़के. ठंडी हवाये जैसे ज़िस्म के अंदर समां जाना चाहती थी. बादल माथे से टकराकर जैसे समझा रहे थे की जरा सा हाथ बढाओ और मैं करीब ही हूँ तुम्हारे. आसमान अपनी विशालता का अहसास करा रहा था और उकसा रहा था की थोड़ा सा और ऊपर उठो और मैं तुम्हारे कदमो में होऊँगा. सब कुछ इतना खूबसूरत था की कब शाम हो गयी पता ही न चला.
घर की तरफ जाने तक अँधेरा हो चला था, सड़के सुनसान थी, शायद मेरी ज़िन्दगी की तरह. मैंने होटल की तरफ कदम बढ़ा दिए. कुछ समय बाद लगा जैसे कोई पीछा कर रहा है. जब में चाल तेज़ करती पीछे से आ रही आवाज़े भी तेज़ हो जाती और धीमे हो जाने पर धीमे. धीरे-धीरे मसूरी का बाजार नज़र आने लगा था, जिसमे काफी चहल पहल थी. मन का डर कहीं काफूर हो गया और बाजार की रौनक में कही खो गया. तभी एक लड़का थैंक्स कहते हुए मेरे करीब से निकल गया.
मैं उसे देखती ही रह गयी. लंबा, थोड़ा सावला सा, मजबूत कदकाठी वाला. तभी सोच को झटका लगा की न तो मैं उसे जानती हूँ और न ही शायद वह मुझे जानता होगा, फिर उसने मुझे थैंक्स किस बात के लिए कहा, इसी सोच में घर आ गया और मैंने इस बारें में और न सोचना ही बेहतर समझा.
कुछ दिनों बाद एक बार फिर शाम के समय घूमने निकली सनसेट पॉइंट की तरफ जाने लगी, अचानक लगा जैसे कोई जाना पहचाना सा चेहरा पीछे चला गया. मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वह उस रात वाला लड़का था. में उसके पास गयी और उसके करीब बेंच पर बैठ गयी पर वह एक अनजान बुत की तरह बैठा रहा जैसे मेरा वजूद उसके लिए था ही नहीं. पहले थोड़ा गुस्सा आया पर थोड़ी देर में मैंने ही उससे बात की शुरुआत की. उससे पूछा की उसने उस रात मुझे किस बात का शुक्रिया किया था, मेरी आवाज़ को सुन जैसे वह सोते हुए से जागा, मेरी तरफ बिना देखे बस एकटक ज़मीन को निहारता रहा और बोला “उस दिन आपने मुझे राह दिखाई थी, मेरा नाम मयंक है. मैं अक्सर घूमने निकल जाता हूँ उस तरफ पर उस दिन रास्ता भूल गया था वापिस आने का. मैं उसकी बात समझ पाती या कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही वह उठा और मुझे मेरे सवालो जवाबो के साथ एक बार फिर अकेला छोड़ गया. उसका इस तरह से जाना मुझे खल रहा था जैसे अब उससे मिलने की चाहत दिल में और बढ़ गयी थी.
भगवान भी शायद यही चाहते थे, वह अक्सर मुझे उसी बेंच पर मिल जाता था और इस तरह से हमारे मिलने का सिलसिला बढ़ने लगा. मयंक से जितना मिलती, यह विचार उतना ही मजबूत होता जाता की मयंक मुझसे कुछ छिपा रहा है, पर क्या? हमेशा लगता वह मुझसे दूर रहना चाहता है, मेरी नजदीकियां उसे परेशां कर रही थी, यहाँ तक की मुझसे बात करते हुए वह मेरी तरफ देखता भी न था उसकी यह बात मुझे और बेचैन किये जा रही थी. मिलना रोज़ होता पर साथ थोड़ी देर का. एक दिन खुद को समझाया और होटल में ही रुक गयी. सोचा की अब मयंक से नहीं मिलूगी अगर उसे मुझसे मिलना पसंद नहीं है तो. तीन दिन बाद होटल के दरवाज़े पर दस्तक हुई तो नींद टूटी, दोपहर के दो बजे कौन हो सकता है, मैंने तो कुछ आर्डर भी नहीं किया था. इन्ही सवालों में उलझी हुई दरवाज़ा खोला तो देखा सामने मयंक था. चेहरे का रंग उड़ा हुआ, बाल बिखरे हुए और परेशान सा. काफी बेचैन लग रहा था वह. उसे मैंने सिर्फ होटल का नाम बताया था रूम no नही तो आश्चर्य हुआ उसके आने पर. मैं उसके सामने खड़ी हुई उसे आश्चर्य से देख रही थी की कानो में उसकी आवाज़ पड़ी “क्या हम कुछ देर बात कर सकते है मेघा” मैंने कहा ” हाँ अंदर आ जाओ पर वो बाहर वही पर बैठ गया और मुझे भी बैठने को कहा. उसका लगातार ज़मीन को देखना मुझे फिर खल रहा था, कम से कम आज तो मेरी तरफ देख कर बात कर बात कर सकता था वह, मैं चाय बनाने के लिए उठने लगी तो उसने रोक लिया मुझे. मैंने उससे नाराजगी भरे लहज़े में पूछा “की मेरा रूम no. किस्से पता चला “. उसने कोई जवाब नहीं दिया. बल्कि मुझसे सवाल पूछा की पिछले तीन दिन से मैं कहाँ थी. मैंने भी जवाब देना जरूरी नहीं समझा और चुप रही. उसने फिर बोलना शुरू किया “तुम किस्से भाग रही हो मेघा खुद से या मुझसे” मैं उसके बहुत करीब बैठ गयी जिसे शायद हम दोनों बहुत शिद्दत से महसूस कर सकते थे. मुझे लगा आज वह शायद मुझसे वही कहने आया है जिसे मैं कबसे उससे सुनना चाहती थी. मैंने आवेश में आकर कहा”मयंक कुछ रिश्ते समझाने से ज्यादा समझने वाले होते है और जिन रिश्तों को कोई समझना न चाहे उनके पीछे भागना पागलपन है. हम दोनों के बीच में सन्नाटा पसर गया. मयंक अभी भी ज़मीन की तरफ देख रहा था, अचानक लगा की वह बहुत भावुक हो गया हो और जैसे उसकी आंखे नाम हो गयी जैसे उसकी ऑंखें उसके दिल का दर्द बयां कर रही थी. अचानक उसने एक पैकेट अपनी जेब से निकाला और मुझे देते हुए बोला की जब तुम अपने घर वापिस जाओ तब इसे खोल कर पढ़ना. कल में लन्दन जा रहा हु और तुमने और तुम्हारे साथ ने जो मुझे दिया है उसे अपने साथ लिए जा रहा हूँ . बस मुझ पर भरोसा रखना और मेरा इंतज़ार करना, मेरी हथेलियों को अपनी नम आँखों से लगाया और फिर हाथ छुड़ा कर चला गया. मेरे लिए जैसे वह हमारे रिश्ते को बिना कुछ कहे समझा गया था.
सुना है ज़िन्दगी हमेशा इम्तिहान लेती है. शाम को पता चला की लन्दन को जाने वाला प्लेन क्रैश हो गया है. एक भी यात्री के बचने की उम्मीद नहीं थी अगर कोई बचा भी था तो वह लापता थे इसलिए उन्हें भी मृत मान लिया गया कुछ सालों के बाद. लगा जैसे दुनिया वहीँ खत्म हो गयी थी मेरे लिए . सूरज को जैसे किसी ने पानी में डूब दिया था. चारो तरफ सिर्फ अँधेरा था मेरे लिए. क्या कहती, किस्से कहती अपना दर्द. मुझे सहारा देने वाला, मुझे अकेला छोड़ कर चला गया था बस छोड़ गया था एक पैकेट :
मैं वापिस घर आयी तो उस पैकेट को खोला, उसके अंदर एक छोटा सा खूबसूरत बॉक्स था जिसमे एक अंगूठी और एक खत था. मैंने खत को खोल कर पढ़ना शुरू किया तो लगा जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी है, वह खत मेरी ज़िन्दगी की शुरुवात और अंत दोनों ही थे, उसमें लिखा था
डिअर मेघा
ज़िन्दगी कितनी नीरस, बेजान और दुखों से भरी है यही सोच कर ना जाने कितने साल गुज़ार दिए. सुना था ज़ीने के लिए उससे प्यार होना जरुरी है पर एक अंधे इंसान को ज़िन्दगी से क्या प्यार होता. तुमसे मिला तो ज़िन्दगी से तो क्या पता नहीं कब खुद से ही प्यार हो गया. ज़िन्दगी का सही मतलब समझ में आया. अब समझ में आया की क्यों लोग ज़िन्दगी को खूबसूरत कहते थे, पर अपने शरीर की कमी कभी तुम्हे बताने की हिम्मत नहीं हुई इसलिए तुमसे भागता रहा हमेशा.इन कुछ दिनों में जाना की किस कदर प्यार करने लगा हु तुम्हे. इन तीन दिनों की जुदाई में लगा किसी ने शरीर को आत्मा से जुदा कर दिया हो जैसे. अब मैंने निश्चय कर लिया है की अब और नहीं. में लन्दन जा रहा हूँ अपनी आँखों के आपरेशन के लिए. अब मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ, तुम्हे महसूस करना चाहता हूँ पर किसी अधूरेपन के साथ नहीं. मैं वापिस आऊँगा और फिर हम एक साथ इस खूबसूरत दुनिया को देखेगे. मुझे पर विश्वास करना और मेरा इंतज़ार करना.
तुम्हारा मयंक
आज ज़िन्दगी के दस साल गुजर गए है. आज भी मसूरी में सब कुछ वैसा ही है जैसा पहले था. वही हवाये, वही बादल, और वही ऊँचा आसमान. पर शायद मेरे लिए ज़िन्दगी के मायने बदल गए थे. वह खत और वह अंगूठी मेरे पास आज भी थी मयंक की आखिरी निशानी. इतने सालों में मसूरी आने की हिम्मत ही न जुटा पायी थी कभी. मयंक ने कहा था मुझे पर विश्वास करना और मेरा इंतज़ार करना, काश वह होता तो देखता की उसकी मेघा उसका आज भी इंतज़ार कर रही है. पर वह नहीं है, कहाँ है यह कोई नहीं जनता…….
आज फिर वही तारीख है जिस दिन मैं मयंक से पहली बार मिली थी. वही जगह, वही नज़ारे, और वही मैं, बस हमारे बीच की कड़ी मयंक ही नहीं है हमारे बीच. सुबह से रात का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. अँधेरा घिर गया था रात होने को थी. मैं उठी और होटल की तरफ चल पड़ी उन्ही सुनसान सड़को पर. अचानक लगा कोई पीछे आ रहा है, जब तेज़ चलती तब पीछे से आती आवाज़े भी तेज़ हो जाती और जब धीमे होती तब धीमे. आश्चर्य से पीछे मुड़ कर देखा तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, मेरे सामने मयंक था. मेरे मुह से सिर्फ इतना निकल सका “मयंक तुम आ गए”. उसने मुझे अपने सीने से लगा दिया और बोला कितने सालों से तुम्हारे आने का यही पर इंतज़ार कर रहा था पगली कितनी देर कर दी आने में. थैंक्स मेघा आज तुमने फिर से मुझे मेरी ज़िन्दगी की राह से मिला दिया …. ई लव यू माय लव
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