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मै एक लड़की हू…..

Zindagi Ka Safar
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मैं एक लड़की हु…. इस एक लाइन में पूरा एक वर्ग खड़ा है ! साधारणतया जब कोई किसी लड़की के बारे में सोचता है तो एक हँसता, खिलखिलाता चेहरा उसके सामने होता है ! लड़कियां बहुत समझदार मानी जाती है, शांत पर साथ ही साथ चंचल ….
अब इसमें मैंने क्या नया बता दिया किसी लड़की के बारें में ! हम लड़कियां किसी समाज का पूरा आधा भाग है,अपने आप में एक समाज हैं हम,उसके बाद भी सबसे ज्यादा अत्याचार, सबसे ज्यादा शोषण महिला वर्ग का ही किया जाता है, कभी सोचा है क्यों, पुरुषो से तादात में ज्यादा होने के बाद भी हम शोषित क्यों है समाज में ! बात में शायद कोई नयापन
नहीं है पर शायद कहने कहने का तरीका होता है बात को और आज में वही एक कोशिश कर रही हूँ !
मैंने कही पढ़ा था की जब किसी लड़की की शादी होती है तो सब यह देखते है की वह दहेज़ में क्या लायी है पर कोई यह नहीं देखता की वह छोड़ कर क्या आयी है ! क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया है कि उस दहेज़ को देखने वाली आंखें किसी पुरुष कि नहीं हमेशा महिलाओ कि होती हैं, हम महिलाये ही हमेशा कहती है फलां कि बहू यह नहीं लायी, फलां कि बहु वह लायी थी ! जब लड़के कि माँ अपने लड़के का रिश्ता पक्का करने जाती है तो अधिकतर दहेज़ कि कामना माँ कि ही होती है क्योंकि उसे भी समाज को जवाब देना होता है, वो समाज जो उसी जैसी महिलाओ से मिल कर बना है, आप कह कर देखे किसी को कि दहेज़ लेना कानूनन अपराध है तो पहला जुमला यही आएगा “ये तो सदियों से चली आ रही रीती है, अब पुरखों के बनाये नियम कैसे छोड़ दें ! तो हम लोग वह सभी रीतियाँ निभा रहे है क्या जो हमारे पूर्वजों ने बनायीं थी ? हम इंसान बहुत स्वार्थी होते है जो फायदेमंद था उसे रख लिया जहाँ खुद को मुश्किल हुई उसे छोड़ दिया ! आप देखिये जब भी कोई महिला किसी परेशानी, किसी दुःख में होती है, कही न कही कोई महिला उसके पीछे जरूर होती है, चाहे वह दहेज़ प्रताड़ना हो, वेश्यावृति हो, या किसी पुरुष कि तरफ से किसी महिला के साथ किया बुरा व्यवहार ! अगर कोई लड़का किसी लड़की के साथ गलत व्यवहार करता है तो हम लड़की को डरा कर चुप करा देते है, उसके कपडे, उसके रहन सहन पर पाबंदियां लगा देते है, घर कि महिलाएं कहेगी लड़के तो छेड़ते ही है इस उम्र में, तुम ध्यान मत दो, या फिर उस रास्ते जाती ही क्यों हो कि वह तुम्हे मिले !पर कभी लड़के के कान नहीं खिंचेगी कि फलां लड़की पर बुरी नज़र क्यों डाली ! हम लड़कों को दूसरी लड़कियों को छेड़ते हुए, उसके साथ गन्दी हरकतें करते हुए देखतें है और उन्हें नीची करके निकल जाते है कि कही यह सब हमारे साथ न होने लगे ! आप किसी महिला से बात कीजिये कभी किसी वेश्या के बारें में देखिये कितनी बुरी बातें बोलेगी उसके बारें में, पर कभी यह नहीं कहेगी कि बिचारी पता नहीं किस मज़बूरी में यह काम कर रही होगी और अगर उसे यह पता चल जाएं कि उसका पति भी जाता है उसके पास तो सारी क़ी सारी गालियों उस बेचारी को ही पड़नी है “फंसा लिया मेरे पति को, नरक में जाएगी ..और भी पता नहीं क्या क्या, जो शायद मुझे लिखने क़ी जरुरत नहीं है आप समझ गए होंगे !
भगवान ने हम महिलाओ को बहुत कुछ दिया है जैसे खूबसूरती, संयम, चंचलता, ममता और भी बहुत कुछ ! बहुत कुछ जो हमें पुरुषो से बहुत ज्यादा विशेष बनाता है ! पर भगवान ने सबसे ज्यादा बुरा भी हमारे साथ ही किया है वह दो गुण दें कर जो हमे नीचे बहुत नीचे गिरा देता है ! पहली हम महिलाएं आपस में ही जलती रहती है एक दूसरे से और दूसरी हम न तो खुद पर भरोसा करती है और नहीं किसी दूसरी महिला पर ! कोई पुरुष हमसे आकर कुछ कहेगा तो झट से मन लेगी पर वही बात किसी महिला ने आकर कही तो एक बार जरूर सोचेगी क़ी इसमें इसका क्या फायदा होगा ! हम महिलाएं एक दूसरे को ही सम्मान नहीं देतीं, मतभेद रहता है हमेशा दो महिलाओं में और यही पुरुषो को बल देता है हम महिलाओं को दबा कर रखने का, उनका शोषण करने का ! जिस दिन हम महिलाएं एकजुट हो जाएगी उस दिन एक शहर नहीं, एक देश नहीं, सारी दुनियां बदल जाएगी !
हमें अपने बेटों को समझाना होगा बचपन से ही कि तुम्हे जो भी चाहिए उसके लिए मेहनत करो और खुद लाओ न कि “रहने दे जब तेरी शादी होती तब आ जायेगा” जैसे शब्द बोल कर उसे नाकारा बनाओ ! अपने बेटे, भाई को हमेशा इस बात को समझाओ कि महिलाओ का सम्मान कैसे किया जाता है न कि अगर वह गलत काम करके आता है तो हंसी में उड़ा दिया कि लड़के तो ऐसे ही होते है …नहीं यह गलत है, आज लड़के जो घर में सीखेगे, जो घर में देखेगे वही समाज को वापिस करेगे तो क्योंकि किसी भी बच्चे का पहले स्कूल उसका घर ही होता है !
हम क्यों मर्दों को माँ-बहन कि गालियां देने कि इजाजत देतीं है क्यों उनको नहीं टोकते कि अगर गुस्सा है, अगर नाराज़गी है तो तरीके बदलें अपने दूसरों से लड़ने के ! न अपनी माँ-बहन को गन्दा बोलने कि इज़ाज़त दें किसी को न खुद किसी कि माँ-बहन को गन्दा कहें !
आज आधुनिकता के पीछे पागल होकर,पुरुषो को सिर्फ यह अहसास कराने के लिए कि हम तुमसे कम नहीं हैं वह वही सब बुराईयों को अपना रहीं हैं जो पुरुषों में होती हैं ! गलियां देती हैं माँ-बहन कि (बिना यह सोचे कि वह इस तरह से खुद को ही नीचे गिरा रहीं हैं ), शराब पीती हैं, CIGGRET पीती हैं ( जो कि उनके स्वास्थ्य को पुरुषो से ज्यादा नुकसान देता हैं ) उन्हें कोई समझाए कि यह सब करने से समाज में उनकी स्थिति ठीक नहीं होगी अपितु पुरुषो को इन बुराईयों से निकालें, उन्हें समझाएं कि महिलाओ का सम्मान करना हैं उन्हें वह बराबरी का दर्ज़ा देना हैं जिसका अधिकार हैं उन्हें !
जिस दिन महिलाएं सोच लेगी कि दहेज़ नहीं लेना हैं, जिस दिन महिलाएं सोच लेगी कि पुरुषों कि गलियां अब नहीं सहेगी, जिस दिन महिलाएं अपने बेटों को यह समझाना छोड़ देगी कि औरतें तो पैरों कि जूती होती हैं ! जब खुद महिलाएं एक दूसरे को सम्मान से देखने लगेगी उस दिन न कोई बहू जलेगी, न किसी औरत कि अस्मत लूटी जाएगी और न ही किसी को वेश्यावृति जैसे घिनाओने काम को करना पड़ेगा ! सिर्फ और सिर्फ हम महिलाओ को बदलने कि जरुरत हैं समाज खुद बा खुद बदल जायेगा ……..

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