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दिन भी कैसे बीत जाते है, पता ही नहीं चलता ! जब जीने का वक़्त होता है, तो वक़्त जैसे रुक जाता है, पर समय गुजर जाने के बाद पीछे मुड़ कर देखो तो लगता है, जैसे ज़िन्दगी दो पलों में ही बीत गयी हो! क्या क्या नहीं हो जाता उन दो पलों की ज़िन्दगी में! इंसान कितनी बार जीता है और न जाने कितनी बार मरता है ! पल – पल, हर पल ……
क्या कुछ नहीं कर गुजरना चाहता एक इंसान ज़िन्दगी में, उसे यह जो दो पल मिले है अपनी ज़िन्दगी में ! जैसे यह पल उसके इस धरती पर होने या न होने का प्रमाण पत्र है ! ज़िन्दगी के दो पलो में हम कितने लोगो से मिलते है जिनमे कुछ लोग मरने के लिए मजबूर कर देते है और कितने ही लोग गिर कर उठने का हौसला दे देते है ! यह पल उन लोगो की भी याद दिलाता है जिन्होंने ने राह भटकाने की कोशिश की और वह लोग भी जिन्होंने संभाल कर सीधा रास्ता भी दिखाया ….
यह ज़िन्दगी दो पलों की कहानी तो नहीं है, जो शुरू होते ही खत्म हो गयी हो, यह एक अंतहीन यात्रा है जो शारीर त्यागने के बाद भी चलती रहती है! याद रखती है ! लोगो के दिलों में, यादों में, उनकी अच्छाइयों में और उनकी बुराईयों में, कभी उनकी हंसी में, तो कभी उनके आँखों के आंसुओ में, इन सबमे एक इंसान हमेशा ज़िंदा रहता है ! कभी कभी सोचती हू, जब कोई मृत्यु शयया पर होता होगा तो क्या सोचता होगा, यह की में मर कर स्वर्ग जाउगा या नर्क, या फिर यह मेरे जाने के बाद मुझे कौन याद करेगा, रोयेगा और कौन खुश होगा और शुक्र मनाएगा मेरे मरने का ?
यह भी तो हो सकता है उस इंसान का दिल अपनी ज़िन्दगी में किये अच्छे या बुरे कामो का लेखा – जोखा देखता हो, की काश ऐसा न किया होता तो वह फलां इंसान खुश होता या किसी की सहायता की होती तो आज मन शांत होता ! किसी के साथ बुरा करने का बोझ तो होता ही होगा दिल पर शायद, क्योंकि अब आप अब उस पल के करीब है जो आपके इस धरती पर होने को नकार देगा… पता नहीं… पर शायद यही होता होगा ?
ज़िन्दगी के बहुत से पलों को बहुत करीब से देखा है, पर अभी तक वह पल नहीं देखा, ज़िन्दगी का आखिरी पल ! अक्सर सोचती हुँ जब मेरे सामने ऐसा समय होगा, तो मै क्या सोचूंगी, पर यहाँ मै अपने बारे में बात क्यों कर रहीं हु ? यह तो मुझे किसी और की ज़िन्दगी को जानना है और समझना है ! क्या होता होगा जब कोई इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ करना चाहता होगा पर ज़िन्दगी के थपेड़ों ने उसकी राह बदल दी होगीं ! शायद न सुकून से सो ही पता होगा और न ही ख़ुशी से जी ही पता होगा ! हम इंसान भी कितने अजीब होते है, जो मिल रहा है उससे खुश नहीं है, और जो पास नहीं है, उपलब्ध नहीं है उसकी चाहत में दुखी रहते है ! मजे की बात यह है की वही वस्तु मिल जाने पर भी खुश नहीं होते, गर्व नहीं करते खुद पर अपितु फिर कुछ और ढूढ़ लेते है हासिल करने के लिए, फिर से वही दुखी, बेबस इंसान !
साधु लोग कहते है इंसान में संयम होना चाहिए, क्योंकि ज्यादा की चाहत दुखी करती है, लोभी बनाती है ! तो सही क्या है और गलत क्या ? यह कैसे पता चलेगा, अगर किसी अलग की चाह नहीं करोगे, अधिक की चाह नहीं करोगे तो ज़िन्दगी तो वही रुकी रहेगी न जहाँ से शुरू की थी ! और जो चली ही नहीं, आगे बढ़ी ही नहीं वह ज़िन्दगी कैसी ? अगर कुछ अलग अनुभव किया ही नहीं तो जीना या मरना सामान ही तो है न ? ज़िन्दगी का मतलब यही तो है न की अपनी धड़कनो को महसूस करना और हर पल कुछ नया अनुभव करना ! लो…. इतनी सारी बातें कर ली और अंत में हाथ क्या आया वही एक “पल”…
पल जो एक एक जुड़ कर पूरी ज़िन्दगी बन जाता है ! एक पूरा अफसाना, एक पूरी कहानी, एक ऐसी कहानी जिसमे बहुत सी हंसी है, बहुत से आंसू और बहुत सी बातें …. कुछ कही और बहुत सारी अनकही !दिल में बसे बहुत से राज़ जो हर इंसान को थोड़ा बहुत रहस्यमयी बना कर रखता है ! यह राज़ कभी खुद की दुनिया बर्बाद कर देने की छमता रखते है और कभी किसी और की !
मैंने बहुत से लोग देखे है जो सुनते ज्यादा है और बोलते बहुत काम है, ऐसे लोगो को “अच्छे श्रोता” कहा जाता है ! सोचती हु क्या उनके पास शब्दों की कमी हैं या उन्हें अपने शब्द बहुत कीमती लगते है ? कुछ तो होगा न की चुप रह सकते है ! मैंने कहीं पढ़ा था इंसान अकेलेपन से बहुत डरता है, क्योंकि अकेलापन इंसान को उसकी आत्मा से बात करने में सहायता करता है ! पर आज का इंसान शायद अपनी आत्मा से बातें नहीं करना चाहता, डरता है, डरता है कहीं उसका अंतर्मन उसे उसके सही-गलत के बारे में न बताने लगे, इसलिए वह व्यस्त रहता है ! अपने ही जैसे कुछ डरे-सहमे लोगो के बीच में रहता है ! हँसता है, बोलता है, लड़ता है, दुखी होता है, दुखी करता है पर अकेला नहीं रहना चाहता ! क्यों ? इस सवाल का जवाब है भी और नहीं भी !
जरा सोचए तो …..
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